Parveen Shakir Shayari | परवीन शाकिर शायरी
इक नाम क्या लिखा तिरा साहिल की रेत पर
फिर उम्र भर हवा से मेरी दुश्मनी रही
-परवीन शाकिर
Ik Naam Kya Likha Tera Saahil Ki Ret Par
Phir Umr Bhar Hawa Se Meri Dushmani Rahi
-Parveen Shakir
क़दमों में भी तकान थी घर भी क़रीब था
पर क्या करें कि अब के सफ़र ही अजीब था
Kadmo Me Bhi Thakaan Thi Ghar Bhi Kareeb Tha
Par Kya Kare Ki Ab Ke Safar Hi Ajeeb Tha
हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा
07
चाँद उस देस में निकला कि नहीं
जाने वो आज भी सोया कि नहीं
भीड़ में खोया हुआ बच्चा था
उसने खुद को अभी ढूँढा कि नहीं
मुझको तकमील समझने वाला
अपने मैयार में बदला कि नहीं
गुनगुनाते हुए लम्हों में उसे
ध्यान मेरा कभी आया कि नहीं
बंद कमरे में कभी मेरी तरह
शाम के वक़्त वो रोया कि नहीं
बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की
चाँद भी ऐन चैत का उस पे तिरा जमाल भी
Baat Wo Aadhi Raat Ki Raat Wo Poore Chand Ki
Chand Bhi Ain Chait Ka Us Par Tera Jamaal Bhi
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया
जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे
चाँद के हमराह हम हर शब सफ़र करते रहे
Justju Khoe Huo Ki Umr Bhar Karte Rahe
Chand Ke Hamraah Him Har Shab Safar Karte Rahe
अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं
अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झाँके कोई
इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चाँद
इक नाम क्या लिखा तिरा साहिल की रेत पर
फिर उम्र भर हवा से मेरी दुश्मनी रही
01
अक़्स-ए-ख़ुशबू हूँ, बिखरने से न रोके कोई
और बिखर जाऊँ तो, मुझ को न समेटे कोई
काँप उठती हूँ मैं सोच कर तन्हाई में
मेरे चेहरे पर तेरा नाम न पढ़ ले कोई
जिस तरह ख़्वाब हो गए मेरे रेज़ा-रेज़ा
इस तरह से, कभी टूट कर, बिखरे कोई
अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं
अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झाँके कोई
कोई आहट, कोई आवाज़, कोई छाप नहीं
दिल की गलियाँ बड़ी सुनसान है आए कोई
Parveen Shakir Shayari | परवीन शाकिर शायरी
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी
वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी
इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे
अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई
और बिखर जाऊँ तो मुझ को न समेटे कोई
हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा
क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा
बारहा तेरा इंतिज़ार किया
अपने ख़्वाबों में इक दुल्हन की तरह
02
रक्स में रात है बदन की तरह
बारिशों की हवा में बन की तरह
चाँद भी मेरी करवटों का गवाह
मेरे बिस्तर की हर शिकन की तरह
चाक है दामन ए क़बा ए बहार
मेरे ख़्वाबों के पैरहन की तरह
जिंदगी तुझसे दूर रह कर मैं
काट लूंगी जलावतन की तरह
मुझको तस्लीम मेरे चाँद कि मैं
तेरे हमराह हूँ गगन की तरह
बारहा तेरा इंतज़ार किया
अपने ख़्वाबों में इक दुल्हन की तरह
रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चाँद
वो कहीं भी गया लौटा तो मेंरे पास आया
बस यही बात है अच्छी मिरे हरजाई की
बहुत से लोग थे मेहमान मेरे घर लेकिन
वो जानता था कि है एहतिमाम किस के लिए
उसके यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई
जी नहीं ये मानता वो बेवफ़ा पहले से था
03
हथेलियों की दुआ फूल ले के आई हो
कभी तो रंग मिरे हाथ का हिनाई हो
कोई तो हो जो मेरे तन को रोशनी भेजे
किसी का प्यार हवा मेरे नाम लाई हो
गुलाबी पाँव मिरे चम्पई बनाने को
किसी ने सहन में मेहँदी की बाढ़ उगाई हो
कभी तो हो मेरे कमरे में ऐसा मंज़र भी
बहार देख के खिड़की से मुस्कराई हो
वो तो सोते जागते रहने के मौसमों का फुसूँ
कि नींद में हों मगर नींद भी न आई हो
बस ये हुआ कि उस ने तकल्लुफ़ से बात की
और हम ने रोते रोते दुपट्टे भिगो लिए
दरवाज़ा जो खोला तो नज़र आए खड़े वो
हैरत है मुझे आज किधर भूल पड़े वो
कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी
मैं अपने हाथ से उस की दुल्हन सजाऊँगी
लड़कियों के दुख अजब होते हैं सुख उस से अजीब
हँस रही हैं और काजल भीगता है साथ